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Sunday, September 9, 2012


उखडे बाल बिखडा जीवन 

पहले जब वो चुल्ठी बनाती थि 
उसका मन बधा हुवा करता था 
अपना घर हि संसार समझ्ती थि वो 
जब वो चिल्लाता था 
वह चुपचाप आशु पिकर सहलेती थि 
फिर उसका मन मे दया उभर आता था 
धिरेसे पास जाकर प्यार  किया करता  था उसे 
फिर हल्के मुस्कान से स्वागत करती थि ओ भी 
तब घर घर ना होकर एक मन्दिर हुवा करता था 
कितना खुस थे लोग वह  था एक जमाना 
अब हावा ने अपनी सुर्ख बदलि, बदलगया जमाना 
सुरु हो गया जब से 
उसका बाल हावा मे लहराना 
जब वो चिल्लाता हे 
उसने  भी पैर के खुन शर तक लाके सुरु करदी  चिल्लाना 
फिर बच्चे छोड्के इन्हे  हो गए घर से  दूर दूर रवाना 
अब घर तों यैसा हो गया 
लगता है वह  तों बनगया  झ्यालखाना 
वकिल खुब हस पडा जब दोनो ने दिया  खजाना 
दोनो रोने लगे एक दुसरेको कोसते कोसते 
हे  उपर वाले ए क्या आगया जमाना ?

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